*मगर जब बन गई मॉं फिर, नहीं हारी कभी नारी (मुक्तक)*
![](https://cdn.sahityapedia.com/images/post/3911765150aaec6103341300ec81a740_2cee1ef532831a0461c3faf330e630ba_600.jpg)
मगर जब बन गई मॉं फिर, नहीं हारी कभी नारी (मुक्तक)
__________________________________
हृदय की भावना का मूल्य, है मस्तिष्क पर भारी
जहॉं है वेदना उसका, जगत सब भॉंति आभारी
प्रकृति की यों तो रचना-श्रेष्ठ, नर भी और नारी भी
मगर जब बन गई मॉं फिर, नहीं हारी कभी नारी
—————————————————–
रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451