हां मैं इक तरफ खड़ा हूं, दिल में कोई कश्मकश नहीं है।
स्वयं का न उपहास करो तुम , स्वाभिमान की राह वरो तुम
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
दोहा त्रयी. . . . शमा -परवाना
कम कमाना कम ही खाना, कम बचाना दोस्तो!
माँ
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
कहो तुम बात खुलकर के ,नहीं कुछ भी छुपाओ तुम !
वो दौर था ज़माना जब नज़र किरदार पर रखता था।
*राम हिंद की गौरव गरिमा, चिर वैभव के गान हैं (हिंदी गजल)*
ज़िंदगी को मैंने अपनी ऐसे संजोया है
When conversations occur through quiet eyes,