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13 Feb 2017 · 1 min read

@@@ भिखारी का सफ़र @@@

दर दर ठोकर खाता जाता एक
लंगड़ा सा, और अँधा सा भिखारी
एक डंडे के सहारे, सहमा सहमा सा
किस से मांगू, किस से न मांगू
पर मांगना था, उस की लाचारी !!

न घर था उसका ,न कोई था ठिकाना
पर समझते थे लोग शायद है
यह इस कोई नया बहाना
लाचार था अपनी मजबूरी से वो
पल पल गुजरती हुई दूरी से वो
पास से गुजरती हुई गाडिया
ठेस पहुंचा जाती थी, और बेचारे
को सब से मिल रही थी गालियाँ !!

हे राम, क्यूं मुझ को बनाया तूने
अँधा और लंगड़ा भी कर दिया
रहम की भीख मांग मांग कर
तूने बड़ा गन्दा यह कर दिया
कोई समझता की मैं जानबुझ कर करता हूँ
किस को बताऊँ कि, यह मैं क्यूं करता हूँ !!
घर पर है अन्धी माँ, और लंगड़ी बीवी
जिस की खातिर मैं, दर दर भटकता हूँ !!

मर्द है न, घर से निकलना उस की थी मजबूरी
न जाने अन्धे को देख कर क्या हो जाये मजबूरी
वो घर कब आएगा यह कैसे बता पाता उन सबको
खुद ठोकर खा लूँगा, पर इज्जत तो रहेगी बची मेरी !!

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

Language: Hindi
Tag: कविता
205 Views

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