*भाषा संयत ही रहे, चाहे जो हों भाव (कुंडलिया)*
![](https://cdn.sahityapedia.com/images/post/c6f2735e13201cce4a2f18dfa8643972_514bbae53449a47afd5d7adc5b1ca034_600.jpg)
भाषा संयत ही रहे, चाहे जो हों भाव (कुंडलिया)
________________________
भाषा संयत ही रहे, चाहे जो हों भाव
बोलें वह जो दे नहीं, किंचित कोई घाव
किंचित कोई घाव, शब्द की महिमा भारी
मतभेदों के मध्य, नहीं हो मारामारी
कहते रवि कविराय, राष्ट्र की यह अभिलाषा
सब जन बनें सहिष्णु, सभ्य हो सब की भाषा
————————————-
रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451