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23 Mar 2022 · 2 min read

भगत_सिंह- राजगुरू- सुखदेव

#भगत_सिंह- #राजगुरू- #सुखदेव

तीन परिंदे उड़े तो आसमान रो पड़ा,
ये हंस रहे थे मगर हिंदुस्तान रो पड़ा..!!

माँ भारती की रक्षा में अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले शहीद शिरोमणि सरदार भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरु को शहीदी दिवस पर कोटि-कोटि नमन।
सम्पूर्ण भारतवर्ष इन वीर सपूतों द्वारा दिए गए बलिदान का सदैव ऋणी रहेगा।

#राजगुरु के नामाकरण की कहानी ————-

24 अगस्त, 1908 को खेड़ा पुणे (महाराष्ट्र) में पण्डित हरिनारायण राजगुरु और पार्वती देवी के घर महान क्रांतिकारी और अमर बलिदानी का जन्म हुआ। शिवराम हरिनारायण अपने नाम के पीछे राजगुरु लिखते थे। यह कोई उपनाम नहीं है, बल्कि एक उपाधि थी। राजगुरू के पिता पण्डित हरिनारायण राजगुरु, पण्डित कचेश्वर की सातवीं पीढ़ी में जन्मे थे। इनका उपनाम ब्रह्मे था। यह प्रकांड ज्ञानी पण्डित थे।
एक बार जब महाराष्ट्र में भयंकर अकाल पड़ा तो पण्डित कचेश्वर ने इंद्र देव को प्रसन्न करने के लिए यज्ञ किया। लगातार 2 दिनों तक घोर यज्ञ करने के बाद तीसरे दिन सुबह बहुत तेज़ बारिश शुरू हुई जो कि बिना रुके लगभग एक सप्ताह तक चलती रही। इससे पण्डित कचेश्वर की ख्याति पूरे मराठा रियासत में फैल गई। जब इसकी सूचना शाहू जी महाराज तक पहुंची तो वह भी इनकी मंत्र शक्ति के प्रशंसक हो गए।
उस समय मराठा सम्राज्य में शाहू जी महाराज और तारा बाई के बीच राज गद्दी को लेकर टकराव चल रहा था। इसमें शाहू जी महाराज की स्थिति कमजोर थी क्योंकि मराठा सरदार ताराबाई की सहायता कर रहे थे। इसी घोर विकट परिस्थिति में शाहू जी महाराज को पण्डित कचेश्वर एक आशा की किरण लगे। इसी के चलते शाहू जी महाराज इनसे मिलने चाकण गांव पहुंचे।
शाहू जी महाराज ने अपने राज के खिलाफ हो रहे षड्यंत्रों से अवगत करवाते हुए उनसे आशीर्वाद मांगा। पण्डित कचेश्वर ने आशीर्वाद देते हुए युद्ध में इनके जीतने की घोषणा की जिसके बाद शाहू जी महाराज की अंतिम युद्ध में जीत हुई। शाहू जी ने इस जीत का श्रेय पण्डित कचेश्वर को दिया और उन्हें अपना गुरु मानते हुए राजगुरु की उपाधि दी। तभी से इनके वंशज अपने नाम के पीछे राजगुरु लगाने लगे।
#शहीदी_दिवस
#इंकलाब_जिंदाबाद..!!
#BhagatSingh
#भारतमाताकीजय

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Like · 129 Views
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