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29 Apr 2023 · 1 min read

बोझ हसरतों का – मुक्तक

क़ता ( मुक्तक ) :-

हसरतों का बोझ लिए फिरती है ।
नदी जैसे सागर में कोई गिरती है ।।
ये ज़िंदगी भी इक तमाशा है साहिब ।
जीने के वास्ते रोज़ रोज़ मरती है ।।

© डॉ वासिफ काज़ी इंदौर
© काज़ी की कलम

Language: Hindi
118 Views
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