Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
23 Jan 2017 · 2 min read

बेटियाँ अच्छी लगती हैं

तेरी मासूम आँखों में शरारत अच्छी लगती है
मेरी बेटी मुझे तेरी हर आदत अच्छी लगती है

जो सर से पाँव तक है वो नज़ाक़त अच्छी लगती है
परी जैसी जो पाई है वो ज़ीनत अच्छी लगती है

ख़ुदा ने बख़्शी जो मुझको ये नेमत अच्छी लगती है
बना हूँ बाप बेटी का ये अज़मत अच्छी लगती है

शिकम में माँ के जब तू थी तसव्वुर तब भी करता था
मगर अब गोद में आकर हक़ीक़त अच्छी लगती है

तेरे आने से मैरे घर में जैसे इक बहार आई
ये चारो सिम्त बिखरी जो मुसर्रत अच्छी लगती है

तुझे चूमूँ तो कुछ एहसास होता है रूहानी सा
बयाँ मैं कर नहीं सकता वो लज़्ज़त अच्छी लगती है

मेरा चेहरा जो छूती है तू अपने नर्म हाथो से
तेरी नाज़ुक हथेली की नज़ाक़त अच्छी लगती है

मेरी मूछ-ओ-गफ़र नोचे किसी की क्या मज़ाल आख़िर
मगर अय लाड़ली तेरी ये हरक़त अच्छी लगती है

तू सबसे छोटी है फिर भी तू ही मलिका मेरे घर की
रियाया हम तेरी हमको हुकूमत अच्छी लगती है

तुझे ख़ामोश देखूँ तो लगे है बोझ सा दिल पे –
अगर तू चहचहाए तो तबीअत अच्छी लगती है

वो मेरी ही किसी इक बात पे नाराज़ हो जाना
फिर आकर मुझसे मेरी ही शिकायत अच्छी लगती है

मैं सारा दर्द अपना भूल जाता हूँ तेरे ख़ातिर
पसीना जब बहाता हूँ मुशक़्क़त अच्छी लगती है

लगाकर जब तुझे कंधे सुलाता हूँ मैं रातों को
तो अगली सुब्ह तक तेरी हरारत अच्छी लगती है

ख़ता पे मेरी जुर्माना लगाती है तू जब झट से
तो पल में फैसला देती अदालत अच्छी लगती

तू अपनी दादी अम्मी का जब अक्सर सर दबाती है
तो उनके अश्क़ कहते हैं के ख़िदमत अच्छी लगती है

रुलाकर एक दिन मुझको पराये घर तू जायेगी
अमीन आख़िर मैं हूँ तेरा अमानत अच्छी लगती है

तुझे मैं दूर ख़ुद से ज़िन्दगी भर कर नहीं सकता
मगर ये सच है बेटी जब हो रुख़सत अच्छी लगती है

कभी भी फ़र्क़ बेटे में न बेटी में किया “बिस्मिल”
मुझे पुरखो की अपने ये रवायत अच्छी लगती है

अय्यूब ख़ान “बिस्मिल”
दुख्तर=बेटी ,अज़मत=महानता ,शिकम=गर्भ,पेट ,मुसर्रत=ख़ुशी , गफ़र=दाढ़ी ,रियाया=प्रजा
मशक़्क़त=महनत ,हरारत=गर्माहट अमीन=रखवाला , रवायत=रस्म

2 Likes · 2 Comments · 559 Views

Books from Ayub Khan Bismil

You may also like:
चश्मा
चश्मा
राकेश कुमार राठौर
वो आए थे।
वो आए थे।
Taj Mohammad
भर मुझको भुजपाश में, भुला गई हर राह ।
भर मुझको भुजपाश में, भुला गई हर राह ।
Arvind trivedi
"सन्देशा भेजने हैं मुझे"
Dr. Kishan tandon kranti
आधुनिकता के इस दौर में संस्कृति से समझौता क्यों
आधुनिकता के इस दौर में संस्कृति से समझौता क्यों
पंकज कुमार शर्मा 'प्रखर'
!! नारियों की शक्ति !!
!! नारियों की शक्ति !!
RAJA KUMAR 'CHOURASIA'
बुलेट ट्रेन की तरह है, सुपर फास्ट सब यार।
बुलेट ट्रेन की तरह है, सुपर फास्ट सब यार।
सत्य कुमार प्रेमी
जीवनमंथन
जीवनमंथन
Shyam Sundar Subramanian
हमनें अपना
हमनें अपना
Dr fauzia Naseem shad
देश की आज़ादी के लिए अंग्रेजों से लड़ते हुए अपने प्राणों की
देश की आज़ादी के लिए अंग्रेजों से लड़ते हुए अपने...
Shubham Pandey (S P)
रखो शीशे की तरह दिल साफ़….ताकी
रखो शीशे की तरह दिल साफ़….ताकी
shabina. Naaz
जीवन पथ
जीवन पथ
Kamal Deependra Singh
Aksharjeet shayari..अपनी गलतीयों से बहुत कूछ सिखा हैं मैने ...
Aksharjeet shayari..अपनी गलतीयों से बहुत कूछ सिखा हैं मैने ...
AK Your Quote Shayari
पढ़ते कहां किताब का
पढ़ते कहां किताब का
RAMESH SHARMA
कभी गरीबी की गलियों से गुजरो
कभी गरीबी की गलियों से गुजरो
कवि दीपक बवेजा
रंग
रंग
Dr Rajiv
तुम जीवो हजारों साल मेरी गुड़िया
तुम जीवो हजारों साल मेरी गुड़िया
gurudeenverma198
*भरे उत्साह से जो उनकी, गाथा नभ ने गाई है(मुक्तक)*
*भरे उत्साह से जो उनकी, गाथा नभ ने गाई है(मुक्तक)*
Ravi Prakash
मोबाइल का आशिक़
मोबाइल का आशिक़
आकाश महेशपुरी
"एक भगोड़ा"
*Author प्रणय प्रभात*
*
*"काँच की चूड़ियाँ"* *रक्षाबन्धन* कहानी लेखक: राधाकिसन मूंदड़ा, सूरत।
radhakishan Mundhra
दिवाली पर एक गरीब की इच्छा
दिवाली पर एक गरीब की इच्छा
Ram Krishan Rastogi
::: प्यासी निगाहें :::
::: प्यासी निगाहें :::
MSW Sunil SainiCENA
✍️मंज़िल की चाहत ✍️
✍️मंज़िल की चाहत ✍️
Vaishnavi Gupta (Vaishu)
मन के ब्यथा जिनगी से
मन के ब्यथा जिनगी से
Ram Babu Mandal
✴️⛅बादल में भी देखा तुम्हें आज⛅✴️
✴️⛅बादल में भी देखा तुम्हें आज⛅✴️
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
“ फेसबूक मित्रों की नादानियाँ ”
“ फेसबूक मित्रों की नादानियाँ ”
DrLakshman Jha Parimal
वक़्त के शायरों से एक अपील
वक़्त के शायरों से एक अपील
Shekhar Chandra Mitra
✍️कर्म से ही वजूद…
✍️कर्म से ही वजूद…
'अशांत' शेखर
नारी
नारी
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
Loading...