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19 Mar 2017 · 1 min read

बुलबुला

पानी के कई अनगिनत से बताशे
रोज मेरे खेलों में बनते बिगड़ते है
आज फिर खुब चमकता सा एक बुलबुला
अनायास हवा में गुम होता चला गया ।

ऐसे ही बेबाक मेरा हसंना और
मेरी चमकती आखों में क्षणिक
झिलमिलाते असंख्य जुगनु
कई दफा रात में बने और दिन में पता न लगा।

रोटी में चांद खोजने की कोशिशें
नमक की ढेली में हर बार नये स्वाद लेता
जिंदा रखता गया मुझमें मेरा सपना
चाहे मैं कई बार कुर्ते की बांहे अनायास भिगा गया ।

मैं नही जानता खुशियों के बँटवारे
सबके लिये अलग अलग कैसे हैं
किन्तु मेरी खुशियों के मायने कुछ तो जुदा है
उन्हे आसान और मुझे पल पल जलजला मिलता गया

गाहेबगाहे आती रही जो चुनौतियों की सदायें
परवाह नही कौन मुझसे मेरी राहे जुदा करता गया
मैं हसंने के बहाने तलाशता सा बेफिक्र
भले ही आज भी वही हूँ एक बनता बिगड़ता बुलबला ।।
नीलम पांडेय “नील”
19/3/17

Language: Hindi
Tag: कविता
640 Views
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