बुझा दीपक जलाया जा रहा है
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बुझा दीपक जलाया जा रहा है
मुझे “पागल” बनाया जा रहा है
करे आंखों से अपनी छेड़खानी
हमे दिल में बसाया जा रहा है
बड़ी मासूम है उनकी निगाहें
मेरे दिल को चुराया जा रहा है
जिसे ढूंढा नजर आता नही वो
बिना मतलब सताया जा रहा है
✍️कृष्णकांत गुर्जर धनौरा