बादल
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काले काले प्यारे बादल।
नीर भरे कजरारे बादल।
श्वेत रुई की फाहे जैसी,
धुँधला धूम-धुआँरे बादल।
इंद्रनील की माला डाले ,
मृदुल मनोरम सारे बादल।
नील फर्श पर धना-धना-सा,
बैठा पलथी मारे बादल।
कभी भूत सा मुखरित होता,
लगता तब बिकरारे बादल।
फटी दरारें बंजर धरती,
हर पल तुझे पुकारे बादल।
पथराई सूनी-सी आँखें,
तेरी राह निहारे बादल।
छोटे-छोटे मोती जैसे,
झटपट जल बरसा रे बादल।
लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली