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10 Dec 2022 · 1 min read

बदल दी

तू फूल थी, तो मैं उसका सुगंध था!
तू नदी थी, तो मैं उसका धारा था!
तू माचिस थी, तो मैं उसका मशाल था!
तू जीवन थी, तो मैं उसका राह था!
यह सभी जानते हुए कि एक दूजे के बिना कोई आगे नहीं बढ़ सकता.
फिर तुझे कौन सी महक लगी,
कि तू फूल की सुगंध बदल दी!
नदी की धारा बदल दी!
माचिस की मशाल बदल दी!
और जीवन जीने की राह बदल दी!
——————०००——————
कवि : जय लगन कुमार हैप्पी

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