Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
27 Apr 2023 · 2 min read

बढ़ती गर्मी

ललित निबंध

विषय-बढ़ती गर्मी

भारतवर्ष की भूमि अनेक गुणों की खान है। उनमें एक सबसे बड़ा गुण यहां की अत्यंत मनोहर प्रकृति है। भारत में सभी ऋतुएं बार -बार आती है।
भारत के विभिन्न राज्यों में ऋतुओं का अपना-अपना महत्व है। कुछ राज्यों में सम मौसम रहता है और कुछ राज्यों में ऋतुएं अपना -अपना रंग दिखाती हैं ।भारत के पर्वतीय क्षेत्रों में सर्दियों में अत्यधिक ठंड के कारण पर्वत भारी हिम‌ से श्वेत धवल हो जाते हैं। नदी- नालों में पानी जम जाता है। सूर्य की उष्मित किरणें पढ़ने से हिम धीरे-धीरे पिघल कर पानी रूप में बदलने लगता है और छोटे-छोटे नालों का‌ रूप ले कर बहने लगता है। वातावरण अधिक ठंडा हो जाता है। सर्दियों के बाद बसंत और ग्रीष्म ऋतु के क्या कहने? हिम दल पिघल कर नदी -नाले भर देता है, पेड़ पौधों पर नवजीवन का संचार होता है, नवीन पल्लव पुष्पगुच्छ वातावरण को महका देते हैं ।प्रकृति अलकापुरी बन जाती है।
पर्वतीय क्षेत्रों की एक बात खास होती है कि यहां गर्मी का प्रकोप अधिक नहीं होता। मौसम सुहाना होने के साथ-साथ अधिक रमणीय होता है। यहां की बरसात भी अधिक प्रकोप नहीं ढाती। भारी वर्षा होने के कारण भी पानी एक स्थान पर नहीं ठहरता। कुछ पानी को भूमि सोख लेती है और बाकी पानी ढलान की ओर बह कर नदी- नालों में मिल जाता है। इसके विपरीत समतल क्षेत्रों में शीत ऋतु सुहावनी होती है। सूर्य देव प्रातः जल्दी आकर अपनी ऊष्मा से वातावरण ऊश्मित कर देता है। जनजीवन अपने -अपने कार्यों में व्यस्त हो जाता हैं। बसंत ऋतु अधिक सुहावनी होती है। दूर-दूर तक सरसों के पीले -पीले खेत मन को हर लेते हैं। पेड़ पौधों पर तरह-तरह के फूल वातावरण सुगंधित कर देते हैं, परंतु जैसे-जैसे गर्मी बढ़ती है वातावरण में गर्म हवाएं भी तन को जलाने लगती हैं। पानी का अत्याधिक आभाव हो जाता है। सड़कों पर गर्मी अपना प्रभाव डालती है ।सूर्य की तेज किरणों से सड़के तवे की तरह गर्म हो जाती हैं। पशु और जोजन नंगे पांव चलते हैं उनका चलना दूभर हो जाता है। पशु-पक्षी प्यास से मरने लगते हैं ,जन जीवन में बीमारियों का प्रकोप बढ़ जाता है, लू लगने का खतरा बढ़ जाता है। दस्त -उल्टिओं के कारण चिकित्सालय भर जाते हैं। वातावरण धूल -मिट्टी, मक्खी -मच्छरों से भर जाता है। अधिक गर्मी के कारण चारों ओर त्राहि-त्राहि मच जाती है। सभी लोग व पशु -पक्षी गगन की ओर बादलों के छा जाने के लिए निहारते रहते हैं। वर्षा ऋतु में वर्षा तो होती है परंतु इसकी चिपचिपी गर्मी भी असहनीय होती है। पानी तो मिल जाता है पर मक्खी -मच्छरों का प्रकोप भी बढ़ जाता है। यहां पर अधिकतर लोग बाढ़ की चपेट में आकर बेघर होकर बीमारी और भुखमरी के शिकार हो जाते हैं। जनजीवन अधिक अस्त-व्यस्त हो जाता है। जैसे -तैसे वर्षा ऋतु बीत जाती है ।शीत ऋतु पुनः प्रवेश करती है ।जनजीवन फिर से सुधरने लगता है परंतु कालचक्र फिर बढ़ने लगता है ।नियति फिर अपने चक्कर पर चलती है।

ललिता कश्यप जिला बिलासपुर हिमाचल प्रदेश

Language: Hindi
333 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
दोहा ग़ज़ल (गीतिका)
दोहा ग़ज़ल (गीतिका)
Subhash Singhai
जन्मदिन शुभकामना
जन्मदिन शुभकामना
नवीन जोशी 'नवल'
जिंदगी
जिंदगी
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
कशमें मेरे नाम की।
कशमें मेरे नाम की।
Diwakar Mahto
नज़र
नज़र
Dr. Akhilesh Baghel "Akhil"
Friendship Day
Friendship Day
Tushar Jagawat
आज़ादी के दीवानों ने
आज़ादी के दीवानों ने
करन ''केसरा''
"विदाई की बेला में"
Dr. Kishan tandon kranti
❤️ मिलेंगे फिर किसी रोज सुबह-ए-गांव की गलियो में
❤️ मिलेंगे फिर किसी रोज सुबह-ए-गांव की गलियो में
शिव प्रताप लोधी
*चंद्रशेखर आजाद* *(कुंडलिया)*
*चंद्रशेखर आजाद* *(कुंडलिया)*
Ravi Prakash
आखिर तेरे इस हाल का, असल कौन जिम्मेदार है…
आखिर तेरे इस हाल का, असल कौन जिम्मेदार है…
Anand Kumar
बचपन याद बहुत आता है
बचपन याद बहुत आता है
VINOD CHAUHAN
2344.पूर्णिका
2344.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
" शांत शालीन जैसलमेर "
Dr Meenu Poonia
सच तों आज कहां है।
सच तों आज कहां है।
Neeraj Agarwal
!! घड़ी समर की !!
!! घड़ी समर की !!
Chunnu Lal Gupta
बिना वजह जब हो ख़ुशी, दुवा करे प्रिय नेक।
बिना वजह जब हो ख़ुशी, दुवा करे प्रिय नेक।
आर.एस. 'प्रीतम'
# होड़
# होड़
Dheerja Sharma
यूं तो मेरे जीवन में हंसी रंग बहुत हैं
यूं तो मेरे जीवन में हंसी रंग बहुत हैं
हरवंश हृदय
हमारी दुआ है , आगामी नववर्ष में आपके लिए ..
हमारी दुआ है , आगामी नववर्ष में आपके लिए ..
Vivek Mishra
बच्चो की कविता -गधा बड़ा भोला
बच्चो की कविता -गधा बड़ा भोला
कुमार
ताश के महल अब हम बनाते नहीं
ताश के महल अब हम बनाते नहीं
इंजी. संजय श्रीवास्तव
॰॰॰॰॰॰यू॰पी की सैर॰॰॰॰॰॰
॰॰॰॰॰॰यू॰पी की सैर॰॰॰॰॰॰
Dr. Vaishali Verma
नयन प्रेम के बीज हैं,नयन प्रेम -विस्तार ।
नयन प्रेम के बीज हैं,नयन प्रेम -विस्तार ।
डॉक्टर रागिनी
कबूतर इस जमाने में कहां अब पाले जाते हैं
कबूतर इस जमाने में कहां अब पाले जाते हैं
अरशद रसूल बदायूंनी
अधमी अंधकार ....
अधमी अंधकार ....
sushil sarna
चार मुक्तक
चार मुक्तक
Suryakant Dwivedi
।।
।।
*प्रणय प्रभात*
माँ..
माँ..
Shweta Soni
ज़िन्दगी
ज़िन्दगी
SURYA PRAKASH SHARMA
Loading...