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4 Jun 2023 · 1 min read

फूल मोंगरा

फूल मोंगरा
तू स्वच्छ धवल ,शोभा आंगन की,
दर्द न जानें कोंई ।
हार बना लेता है तुझको
जस रावत की नोई ।।

पर प्राण प्यारी हो तुम
मस्त खिली हो आंगन में
कवि ह्रदय में खिली रहो
महक रहे दिल साजन में

माली आते,तोड़ ले जाते
हार बनाते हैं तुझको।
देते हैं बेच बीच बाजार
तड़फ होता है मुझको।।

तू निरीह बिन मुंह की
जस आटा की लोई।
हार बना लेता है तुझको
जस रावत की नोई।।

प्रेम सागर में तुम डुबी रही
शायद तेरा भी दिल होगा।
समझ पायेंगे धड़कन तेरा
शायद ऐसा कोई होगा।।

समझ न पाये माली भी
तेरी चाहत क्या है।
कवि विजय की धड़कन हैं
तेरी धड़कन की राहत क्या है।

स्वच्छ धवल है हृदय तेरा
जस धोबी की धोई
हार बना लेता है तुझको
जस रावत की नोई।।

लेकर महक स्वांसो में
हैं आनन्द दिल में भरते
फ़र्ज़ निभाने जीवन भर
हैं पापी क्यों डरते।।

दिल ❤️ में रख हाथ अपना
मुंह से है चुंबन करते
कुम्हला गई तनिक भी
डगर म फेंकते चलते।

होती है इच्छा दिल में मेरा
मैं भी चुंबन ले लूं
तेरे हृदय के धड़कन का
आधा हिस्सा ले लूं।।

पर जगह नहीं दिल पर मेरे
दिल पर मेरा धड़कन है
तू स्वच्छ धवल क्वारी है
मेरा विवाहित होना अड़चन है।।

लेकर सुगंध फेक दिया
गली राह पे दोंगरा
दर्द समझा कवि हृदय
नीरस पड़ी है फूल मोंगरा।।

यह कविता कवि भाव से लिखा गया है,

डां विजय कुमार कन्नौजे अमोदी आरंग ज़िला रायपुर छ ग

Language: Hindi
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