प्रेम

प्रेम को समझे तो यही सब कुछ है!
न समझ पाए तो फिर कहाँ कुछ है!!
हंसी, ख़ुशी, त्याग, इंतजार और न जाने क्या क्या!
प्रेम करके करना होता ज़िंदगी मे बहुत कुछ है!!
प्रेम का भी अपना अलग असर होता है!
ये दिल सुनता कुछ और समझता कुछ है!!
हो जाये एक बार प्रेम किसी से !
फिर इंसान के बस में नही कुछ है!!
सबके बस की बात नही ये समझ पाना!
प्रेम हो जाये तो होने लगता कुछ कुछ है!!
प्रेम की भी “अद्वितीय” फ़ितरत होती है यारों!
ज़िंदगी होती है कुछ और लगती कुछ है!!
स्वरचित/मौलिक ✍️
डॉ. शैलेन्द्र कुमार गुप्ता
“अद्वितीय”
7828506874
छत्तीसगढ़