“वो प्रेमिका बन जाती है”
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आवाज़ दिल की पन्नों पे उतर आती है
फिर इस तरह एक ग़ज़ल बन जाती है
बाकी ना रहे कुछ भी दिल के अन्दर
रहे तो शायर की जान पे बन आती है
पहन के लिबास शायर के एहसासों का
फिर खुद पर ही फिर बड़ा इतराती है
समंदर की लहरों सी चंचल है बहुत
उठती -गिरती है,आती है चली जाती है
एक दूजे बिन नहीं रह सकते हैं दोनों
राणाजी प्रेमी और वो प्रेमिका बन जाती है
©ठाकुर प्रतापसिंह राणा
सनावद (मध्यप्रदेश )