Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
16 Sep 2021 · 3 min read

प्रलय गीत

प्रलय गीत,
प्रकृति अब विश्राम करो।
~~~~~~~~~~~~
प्रकृति अब विश्राम करो,
तुम हो कितने प्रणम्य वीर,
क्यों परिश्रांत हुआ रुकते भी नहीं।
थम जाए तो मुख़्तलिफ़ ये घड़ियाँ,
तुम भी थोड़ा विश्राम करो।
कितना अविरत तेरा हृदय,
अभिशप्त हुआ भी न थकता है,
ऐ पवन के झोंके लहराते क्यों,
तुम भी तनिक विश्राम करो।

कितने अरमाँ थे दिल में तेरे,
कितने सपनें साकार हुए।
कब तक लिए तुफान दिलों में,
निस्तब्ध हुआ प्रतिबद्ध रहोगे।
मदहोशी में हैं तेरे चक्षु,
हे दिवा-रात्रि ! विश्राम करो ।
जाने तो निर्बल पुराकल्प,
तुम नूतन-नवीन श्रृंगार करो।

चंदन सा शीतल तेरा प्रकाश,
आलोकित करता सारे जग को।
निर्मल, धवल चाँदनी तेरी,
सदियों से यूँ ही व्यर्थ गई ।
जब मानव मन से,मिट सका न तिमिर,
फिर क्यों अकुलाए दग्ध हुए।
पक्षों की गति अब मिथक करो,
हे कलानिधि ! विश्राम करो।

हे वसुंधरे ! तुम हुई बोझिल,
इस मानव तन के दुष्कर्मों से,
शेषनाग के फन पर बैठी,
क्यों थकती नहीं परिक्रमों से।
थोड़ा विश्राम करो तुम भी,
हे धरणी-धरा ! विश्राम करो ।

धधक-धधक निज ज्वाला से,
कण-कण में प्राण दिया तूने,
तन-मन में समाहित तेरी उर्जा,
यूँ ही व्यर्थ प्रवाहित होती है,
नभ में अविचल,अटल खड़ा रवि,
कब तक रहोगे प्रज्वल्यमान।
रुको,रुको, आराम करो,
हे प्रणतपाल ! विश्राम करो ।

ज्ञानदीप की ज्योति पर,
पड़ी है पपड़ियों का जाल।
इन जालों का रंग स्याह देखो,
ढक लेता है उजले मन को।
मानवता विक्षिप्त हो रही,
आज धुमिल हो रही है दीप्ति।
फिर क्यों निरंतर करते प्रयत्न,
हे रवि ! आलोकित प्रकाश पुंज,
तुम भी थोड़ा विश्राम करो।

तेरे पावन नदियों का जल,
अब पथ से विचलित हो रही।
नितांत गति से प्रवाहित होकर,
ढूंढता है उन चरणों को,
जिससे हो सके नवजगत सृष्टि,
इस दुर्भिक्ष समय की बेला में,
क्यों करते हो तुम अश्रुपात।
हर पल बहते हे सरित प्रवाह,
तुम भी रुको विश्राम करो।

मिथ्या ज्ञान के मद में डुबा,
नादान बना ये जनजीवन।
उलझकर खुद के भंवरजाल में,
गतिहीन जड़वत हो गये हैं।
इससे तो सार्थक पशु जीवन है,
मुक्त है जिसके मन की गतियां,
इन भूत-भविष्य के उलझनों से।
किस संशय में तुम उलझ गए,
हे जलधिपति ! विश्राम करो ।

अंधियारे सपनों में मानव सोता है,
पिपासा व जश्नों में डुबा हुआ सा,
अनभिज्ञ है कर्मपथ के सद्ज्ञान से,
पल-पल की माया से प्रेरित होकर,
मदहोश हुआ ही सोता है,
इस निद्रा के गहरे आँचल में,
तुम भी थोड़ा विश्राम करो।

मूर्छित अचेत हर तन नर का,
हर रिश्ते आज बेकार हुए।
सागर में रहकर लहरों से,
घबराता चितवन भ्रमजालों से।
इतना अशांत चित्त हर नर है आज,
तुम देख-देख घबराते हो।
किस पल का इंतजार है तुझको,
तुम निर्मल नीतिज्ञ विधान करो।

परखा है तुमने जीवन को,
हर जीवों के तन में जाकर।
देखा है तुमने स्वप्नों को,
हर मानव के मन में जाकर।
स्वरों के करूण क्रंदन में,
तुम रोते हो जग हँसता है।
पंचभूत जड़ित इस तन से तुम,
ज्यों निकल पड़े, जग रोता है।
नीरवता बिखेर दो भूतल पर,
अब समय आ चुका विश्राम करो।

तुम धरा के प्राण हो,
तुम आत्मा के मधुर बंधन।
अनन्त सत्ता के स्वरुप और,
शून्यता के प्रतीक हो तुम।
किसलिए निरंतर रहते गतिमान,
हे प्राणपति ! विश्राम करो ।
मैं कहता हूँ आर्तस्वर में तुझको,
हे महाशक्ति ! विश्राम करो।

प्रकृति अब विश्राम करो…

मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि -१६ /०९/२०२१
मोबाइल न. – 8757227201

Language: Hindi
5 Likes · 8 Comments · 1261 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from मनोज कर्ण
View all
You may also like:
रामायण से सीखिए,
रामायण से सीखिए,
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
"ये दुनिया बाजार है"
Dr. Kishan tandon kranti
खड़ा चुनावों में है जो उसमें  , शरीफ- गुंडे का मेल देखो   (म
खड़ा चुनावों में है जो उसमें , शरीफ- गुंडे का मेल देखो (म
Ravi Prakash
कौआ और बन्दर
कौआ और बन्दर
SHAMA PARVEEN
कितने चेहरे मुझे उदास दिखे
कितने चेहरे मुझे उदास दिखे
Shweta Soni
कहानी
कहानी
Rajender Kumar Miraaj
सोचें सदा सकारात्मक
सोचें सदा सकारात्मक
महेश चन्द्र त्रिपाठी
गांधीजी की नीतियों के विरोधी थे ‘ सुभाष ’
गांधीजी की नीतियों के विरोधी थे ‘ सुभाष ’
कवि रमेशराज
खुद का वजूद मिटाना पड़ता है
खुद का वजूद मिटाना पड़ता है
कवि दीपक बवेजा
हम भी अपनी नज़र में
हम भी अपनी नज़र में
Dr fauzia Naseem shad
गुरु
गुरु
Rashmi Sanjay
Pyasa ke dohe (vishwas)
Pyasa ke dohe (vishwas)
Vijay kumar Pandey
तेरा यूं मुकर जाना
तेरा यूं मुकर जाना
AJAY AMITABH SUMAN
मुश्किल से मुश्किल हालातों से
मुश्किल से मुश्किल हालातों से
Vaishaligoel
डॉ अरुण कुमार शास्त्री - एक अबोध बालक - अरुण अतृप्त  - शंका
डॉ अरुण कुमार शास्त्री - एक अबोध बालक - अरुण अतृप्त - शंका
DR ARUN KUMAR SHASTRI
हम तुम और वक़्त जब तीनों क़िस्मत से मिल गए
हम तुम और वक़्त जब तीनों क़िस्मत से मिल गए
shabina. Naaz
"गुरु पूर्णिमा" की हार्दिक शुभकामनाएं....
दीपक श्रीवास्तव
*Nabi* के नवासे की सहादत पर
*Nabi* के नवासे की सहादत पर
Shakil Alam
2882.*पूर्णिका*
2882.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
चुनाव
चुनाव
Neeraj Agarwal
■ 100% यक़ीन मानिए।
■ 100% यक़ीन मानिए।
*प्रणय प्रभात*
कभी सोचता हूँ मैं
कभी सोचता हूँ मैं
gurudeenverma198
संगदिल
संगदिल
Aman Sinha
गजल सगीर
गजल सगीर
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
सफर पर है आज का दिन
सफर पर है आज का दिन
Sonit Parjapati
मैं हर महीने भीग जाती हूँ
मैं हर महीने भीग जाती हूँ
Artist Sudhir Singh (सुधीरा)
*
*"हरियाली तीज"*
Shashi kala vyas
"सुप्रभात"
Yogendra Chaturwedi
गमों के साथ इस सफर में, मेरा जीना भी मुश्किल है
गमों के साथ इस सफर में, मेरा जीना भी मुश्किल है
Kumar lalit
स्वतंत्रता दिवस पर विशेष
स्वतंत्रता दिवस पर विशेष
पूनम दीक्षित
Loading...