*पृथ्वी दिवस*
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धरा ने कहा
मेरे गर्भ को पहचानो
मत काटो मेरे भ्रूण को
मुझे थोड़ा तो जानो
मेरे पेट मे पड़ी
जड़ों को पहचानो
मत खड़ी करो इतनी इमारतें
केवल रहने का साधन बनाओगे
तो ऑक्सीजन कहां से लाओगे
क्या प्राणवायु बिना
तुम जिंदा रह पाओगे
प्लास्टिक के कूड़े के ढेर
मेरे पेट में ना भर आओ
पौष्टिक नहीं खिलाओगे तो
मेरे भ्रूण की हत्या का
हत्यारे कहलाओगे
मुझे प्यार से सहलाओ
मेरे भ्रूण में पड़े पेड़ों को
सीचंकर तुम बढ़ाओगे
रोक दो उस जहरीले धुएं को
जो शांत प्रकृति को जलाती है
ओजोन लेयर को भी हटाती है
मेरे निकट आओ
एक ठंडी सी छांव पाओ
प्रकृति से जुड़ जाओ
आज पृथ्वी दिवस मनाओ
प्रण कर आओ
एक नई पौध लगाओ
मेरी रोती हुई पृथ्वी को
पृथ्वी दिवस पर ही हंसाओ
मौलिक एवं स्वरचित
। मधु शाह(२२-४-२३)