पुरूषो से निवेदन
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ज्योति आलोक मौर्य की
चर्चा हुआ है तेज
शशंकित हुआ है पुरुष जन
अपनी पत्नी देख
पुरा तालाब को किया गंदा
सड़ा है मछली एक
सज्जन नर पीते हैं पानी
उस मछली को फेंक
सड़ा मछली तो एक हैं,
पर लाखों मछली है नेक
अपन बहन बेटी,बहु , पत्नी
संस्कार हृदय नार में देख
कर लेना विश्वास जगत में
भारत मां की है धरती
संस्कार शील बहु है भारत में
जो मर्यादा में है रहती
बहु बनकर आई थी जग में
सीता सावित्री अनसुईया
ज्योति आलोक के गाथा पे
शशंकित न होना भईया।।
कवि
डां विजय कुमार कन्नौजे
अमोदी आरंग
ज़िला रायपुर छ ग