*पीला भी लो मिल गया, तरबूजों का रंग (कुंडलिया)*
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पीला भी लो मिल गया, तरबूजों का रंग (कुंडलिया)
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पीला भी लो मिल गया, तरबूजों का रंग
बाहर से सामान्य था, भीतर देखा दंग
भीतर देखा दंग, लाल पहचान मिटाई
लाल रंग की कांति, मधुर पीले तक आई
कहते रवि कविराय, हरा छिलका जब छीला
सब जन बोले वाह, अरे यह निकला पीला
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर
उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451