*** पल्लवी : मेरे सपने….!!! ***
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“” मैं पंछी बन उड़ना चाहती हूँ…
उस अनंत आकाश को छूना चाहती हूँ…!
जहां मेरे सपने को उड़ान मिले…
मेरे शक्ति, मेरे हौसले की पंख को,
एक पहिचान मिले…!
ऐसे तो उड़ने को सारा जहान है…
लेकिन एक इरादा है मेरे,
उस अनंत आकाश को,
मेरी तकाजा का कुछ अनुमान मिले…!
न चाह है मुझे…
सोने की किसी पिंजरे की,
घेरों में रहने की…!
मेरी तो चाह है…
तिनके सी घोंसलों में,
गुजर-बसर करने की…!
मैं तो प्राकृत विचार को लेकर…
उड़ने वाली एक पंछी हूँ…!
मैं तो तेरे-मेरे भावों को छोड़…
बे-सुर्ख विचारों से मुंह मोड़…!
आ चल सब अपने हैं…
प्रीत की रीति गढ़ते हैं, की..
उन्मुक्त उड़ान भरती पंछी हूँ…!
मैं तो सदा…
उम्मीदों की उड़ान अथक,
वो पंछी एक बनना चाहती हूँ…!
मेरे आकांक्षाओं को…
एक “पर” मिले जहां…!
मेरे विचारों को…
एक आकार मिले जहां…!
उस अनंत आकाश में…
उड़ना चाहती हूँ…!
अपनी अरमान को…
साकार करना चाहती हूँ…!! “”
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