Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
22 Feb 2023 · 8 min read

सरकारी नौकरी

पर्दा उठता है इस कहानी के 4 पात्र हैं घर का एकलौता बेटा राहुल जो कि इस कहानी का मुख्य पात्र है एक पिता जी जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी मैं संघर्ष किया और संघर्ष के चलते वह सिर्फ परिवार का भरण पोषण कर पाए और राहुल की माता एक ग्रहणी है और राहुल की बहन सुशीला है …….

पिताजी : अरे भाग्यवान चाय बन गई हो तो ले आओ मैं काम पर जा रहा हूं

माताजी अभी लाती हूं कुछ खुद भी कर लिया करो मैं अकेली अकेली क्या क्या करूं
लीजिए आपकी चाय ( चाय थमाते हुए)

सुशीला : मुझे भी कॉलेज जाना है मां मेरा नाश्ता बना या नहीं!

माँ : अभी बन रहा है बेटा…,

पता नहीं मैं इस काम से कब फ्री होंगी जल्दी से बहू आ जाए और रसोई की सारी जिम्मेदारी उठा ले
(बड-बडाते हुए हुए)

सुशीला नाश्ता करके कॉलेज चली जाती है
राहुल अपनी पढ़ाई में व्यस्त हैं
(राहुल की कॉलेज की शिक्षा पूरी हो चुकी है कब है सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहा है)

मां सारे काम निपटा कर जैसे ही फ्री होती है कि दोपहर के 2:00 बज जाते हैं कानपुरी करके फार्म करने बैठती है माँ

राहुल: मेरे लिए खाना डाल दो ना

माँ : जाकर अपने आप ले ले बनाकर रख आई हूँ

साम होती ही है पिताजी का प्रवेश होता है बेटी भी कॉलेज से घर आ जाती है

माँ : आ गए जी आप
कुछ पैसे की व्यवस्था हुई या नहीं

पिताजी : कोई व्यवस्था नहीं हुई है दिमाग खराब है मेरा कैसे चलेंगे सारे खर्चे करके
बेटा कुछ करता धरता नहीं है
अब पोथिया पढ़ने से भला पैसे थोड़ी आते हैं

माँ : तुम चुप करो जी जब देखो बेटे के पीछे ही पड़े रहते हो वह बेचारा कर रहा है ना मेहनत उसकी मेहनत एक दिन जरूर रंग लाएगी

पिताजी : हां तूने ही तो इसको सिर पर चढ़ा रखा है

माँ : तुमसे बहस करना बेकार है आप हाथ मुंह धो लो में खाना लगा देती हूं

सुशीला : पिताजी मेरी भी कॉलेज की फीस भरनी है सर रोज फीस की बोलते हैं…!
कब तक हो जाएगी व्यवस्था

पिताजी: देखता हूं किसी से ले देकर कोई जुगाड़ होता है तो मुझे तो अभी देर से पैसा मिलेगा !

राहुल : पापा मुझे भी तैयारी करने के लिए बाहर जाना है मेरे साथ कि सभी दोस्त जारी करने के लिए बाहर गए हुए हैं

पिताजी: बेटा तू खुद समझदार है मेरे पास इतना पैसा नहीं है कि मैं तुझे पढ़ने के लिए बाहर भेज सकूं तो अपने स्तर पर यहीं रहकर पढ़ाई कर !

माताजी : सबको पता है शर्मा जी का बेटा भी आजकल बाहर तैयारी कर रहा है उसे पड़ोस के काफी लोग बोलते हैं कि राहुल बहुत होशियार है अगर इसे आप बाहर तैयारी करने भेज दो तो यह सफल हो जाएगा !

पिताजी : इस बारे में भी

माँ खाना लगा देती है सभी मिलकर खाना खाते हैं

माता और पिता में संवाद शुरू हो जाता है

माँ : सुनो जी अब मुझसे काम वाम नहीं होता है जल्दी से अब एक बहु लादो ना !

पिताजी : बहू का पेड़ पर उगती है जो तोड़कर ला दू मैं

माँ: राहुल कि अब उम्र भी हो चली है हमारा राहुल छव्वीस बरस का हो गया है इससे ज्यादा लेट क्या करना !
आपके साथ के इतने सारे मित्र हैं उनसे बात करो ना
पिताजी : तू क्या समझती है क्या मैंने बात नहीं की है उनसे मैं कई बार चर्चा छेड़ चुका हूं वह मुझसे यह पूछते हैं कि वह करता क्या है क्या बोलूं मैं उनको

माँ : देखो हमारी मांग जाचं तो कोई है नहीं है हमें दहेज में कुछ नहीं चाहिए

पिताजी : मैं देखता हूं कहीं बात करके

माँ: आपके दोस्त शुक्ला जी की बेटी भी तो शादी के लायक हो चुकी है

पिताजी : क्या बात करती हो तुम कहां राजा भोज कहां गंगू तेली

वह खुद सरकारी तरफ दफ्तर में बाबू हैं और उनकी बेटी भी बाहर रहकर सरकारी नौकरी की तैयारी कर रही है

माँ: क्या फर्क पड़ता है हमारा राहुल भी तो सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहा है तुम बात करके तो देखो

ऐसे ही 2 वर्ष गुजर जाते हैं अब राहुल की उम्र 28 बरस हो जाती है
सुशीला भी अब 25 वर्ष की हो चुकी है

पिताजी का दिन प्रतिदिन का संघर्ष जारी है

अचानक रिश्तेदारों का आगमन

पिताजी : आइए आपका स्वागत है अतिथि और सुनाइए शर्मा जी क्या हाल-चाल हैं आपके

पिताजी : बस ऊपर वाले का आशीर्वाद से कट रही है जिंदगी

अतिथि : और सुनाइए राहुल कैसा है शुशीला कैसी है

पिताजी सब बढ़िया है

अतिथि : राहुल आजकल क्या कर रहा है

पिताजी : वह तैयारी कर रहा है अपनी अतिथि : उसे तैयारी करते हुए तो काफी साल हो गए ना अभी तक कहीं लगा नहीं क्या
अब तो उसकी उम्र भी काफी हो गई है

पिताजी : देखते हैं कब भगवान सुने हमारी
माताजी का प्रवेश होता है
माताजी चाय थमाते हुए बहुत जल्दी हमारा बेटा सरकारी नौकरी लगने वाला है

अतिथि : हां जल्दी से मिठाई खिलाओ हमें भी

पिताजी आप ही कोई लड़की बताओ ना हमारे बेटे के लिए देखो हमें दहेज होता तो कोई लोग लालच नहीं है

अतिथि : राहुल के लिए………… देखते ……..हैं…. !( टालते हुए)

कल राहुल की प्रशासनिक सेवा की मुख्य परीक्षा है राहुल ने इस परीक्षा के लिए बहुत ही कठिन परिश्रम किया है और उसकी तैयारी चरम पर है

राहुल सुबह-सुबह जल्दी उठ कर तैयार हो जाता है

राहुल : माँ मुझे आशीर्वाद दो आज मेरा पेपर है मैं सफल हो जाऊं ;

माँ : मेरा आशीर्वाद हमेशा तेरे साथ है बेटा

बेटा चाय पी कर जाना और नाश्ता करके जाना नाश्ता तैयार है

सुशीला : बेस्ट ऑफ लक भाई

राहुल : धन्यवाद बहन
एक बार नौकरी लग जाओ बहन तेरी शादी में बहुत धूमधाम से करूंगा

राहुल पेपर देकर घर आता है

पिताजी : कैसा हुआ तेरा पेपर कुछ हो जाएगा या नहीं होगा

राहुल: देखते हैं

पिताजी ( गुस्से से) :
देखते हैं का क्या मतलब 4 साल तैयारी करते करते हो गए तुझे तैयारी कर भी रहा है यां

माँ: आ गया बेटा, आजा बेटा तेरे लिए खाना लगा देती हूं

उर्मिला: पेपर कैसा हुआ भाई आपका

राहुल : बढ़िया हो गया

उर्मिला और राहुल बात करते-करते खाना खाते हैं

पिताजी बोलते बोलते काम पर चले जाते हैं

4 महीने बाद….

आज राहुल का परिणाम आने वाला है

घर के सभी लोग इंतजार में है

दोपहर के 2:00 बजते हैं राहुल के फोन पर फोन आता है

राहुल : हेलो

दोस्त : मुबारक हो भाई तेरा प्रशासनिक सेवा में चयन हो गया है तूने अपना रिजल्ट देखा

राहुल : सच
(राहुल की आंखों में आंसू आ जाते हैं)

माँ : क्या हुआ बेटा रो क्यों रहा है

सुशीला :क्या हुआ भाई
भाई तू परेशान मत हो कोई बात नहीं क्या हुआ बता तो

पिताजी : यह क्या बताएगा इसका मुंह लटका हुआ है सब कुछ बता तो रहा है

राहुल : ( व्याकुलता भरे मिजाज में)

मां , पिताजी , सुशीला मैंने प्रशासनिक परीक्षा को उत्तीर्ण कर लिया है

और मुझे बहुत अच्छी रैंक भी मिली है

पिताजी : ( गर्व से ) शाबाश बेटा आज तूने मेरा नाम समाज में ऊंचा कर दिया

माँ : आखिर बेटा किसका है मैं तुमसे कहती थी ना कि मेरा बेटा ही दिन बहुत बड़ा अफसर बनेगा

सुशीला : आज मैं बहुत खुश हूं मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं है मैं अपनी सभी सहेलियों को बताती हूं

माँ : मेरी भी सभी रिश्तेदारों से बात करा मैं देखती हूं अब इनको
मैं भी अब लोग से बात किया करूंगी सबसे आखिर हमारा बेटा अपसर जो लगा है!

पिताजी : भाग्यवान आज मेरा मीठा खाने का मन कर रहा है कुछ मीठा बना ना घर पर

माँ : घर पर राशन खत्म हुआ पड़ा है तुम्हें मीठे की पड़ी है

पिताजी : भाग्यवान अब तो तू किसी से उधार ले आ कोई तुझको मना नहीं करेगा और अब कोई चिंता नहीं है

भगवान हम पर मेहरबान हैं

बेटा बना और सबसे पहले भगवान का भोग लगा.

पिताजी : राहुल कल तू भी अपने दोस्तों को घर पर खाने पर बुला उनको पार्टी दे कुछ लगना तो चाहिए आखिर हमारा बेटा अफसर बना है

राहुल : ठीक है पापा

सभी रिश्तेदारों का आगमन अचानक से शुरू हो जाता है

जो रिश्ते कई सालों से उदास पड़े थे मैं अचानक जान कहां से आ गई जैसे मानो किसी बंजर में फूलों का आगमन हुआ हो
परिवार के सभी सदस्य खुश हैं

जो कभी बात नहीं करते थे आ आकर बैठने लगे

पिताजी का तो रोब बढ़ना लाजिमीये ही था!

शादी के लिए रोज नए नए प्रस्ताव आने लगे
(1 महीने के इंतजार के बाद राहुल को स्थानीय जिले में अफसर नियुक्त कर दिया जाता है)

माताजी : अब मैं अपने बेटे की शादी बड़ी धूमधाम से करूंगी

पिताजी : तेरे बेटे से शादी करने के लिए लड़कियों की लाइन लगी है.
मुझे एक बात समझ में नहीं आती एक समय था कि कोई अपनी लड़की बिना दहेज को देने को तैयार नहीं था और आज लाखों रुपए देने के लिए तैयार है (सब समय समय की बात है)

शुक्ला जी का आगमन

शर्मा जी बहुत-बहुत बधाई हो राहुल की नौकरी का पता चला रहा नहीं गया सोचा जाकर बधाई दी हूं

पिताजी: धन्यवाद अहो भाग हमारे जो आप आए

शुक्ला जी : ऐसी बात क्यों कर रहे हैं आप तो हमारे बचपन के मित्र हैं हम आपसे दूर थोड़ी ही हैं

(5 साल से तो कभी घर नहीं आए पिताजी मन ही मन सोचते हुए)
शुक्ला जी : शर्मा जी मैं सोच रहा था कि हमारी बरसों की दोस्ती है चुना इस दोस्ती को रिश्तेदारी में बदलने अकेली अकेली बैठी है हमारी
आपका क्या कहना है

पिताजी : हां शुक्ला जी कहना आपका बिल्कुल सही है बस एक बार बच्चों से तो पूछ ले

शुक्ला जी : मैंने बहुत सारा पैसा अपनी बेटी के लिए जोड़ रखा है मैं अपने दामाद को पूरे 20 लाख रुपए नकद दूंगा और एक गाड़ी भी दूंगा

और मैंने सोचा कि मुझे आपके बेटे से अच्छा दामाद कहां मिलेगा

पिता जी : हां में हां मिलाते हुए

शुक्ला जी चाय पी कर चले जाते हैं

माँ : अब मैं अपनी लड़के की शादी शुक्ला जी के लड़के से नहीं करूंगी

मुझे अपने लड़के की तरह कामयाब लड़की चाहिए

(और अच्छा दहेज भी)

पिताजी भाग्यवान तू ही तो कहती थी कि शुक्ला जी की बेटी के लिए बात करो ..

अब शुक्ला जी खुद चलकर आए हैं इससे अच्छा क्या हो सकता है

माँ : शुक्ला जी चलकर नहीं आए हमारा वक्त चलकर आया है

अगर शुक्ला जी चलकर आते तो 2 – 3 साल पहले ही चल कर आ चुके होते

मैं अपने बेटे की शादी उम्र की लड़की से कतई नहीं करूंगी

पिताजी – बेटे की उम्र तो देखो

मां : सोने के ऊंट के भी भले दांत देखें जाते हैं क्या
सरकारी नौकरी लगा है हमारा लड़का अब मुझे उम्र की कोई चिंता नहीं है

एक से एक नया रिश्ता जैसे मानो किसी चीज की बोली लग रही हो

अंतत राहुल की शादी होती है लाखों का दहेज मिलता है समाज में नाम शोहरत रिश्तेदारों में प्रेम अचानक बढ़ जाता है

गरीबी की लकीरों में अमीरी कुछ तो है पैसा आते ही ये किरदार बदल देती है,
जिन्होंने साथ छोड़ दिया था रास्ते में
बिछड़े रिश्तो के रिश्तेदार बदल देती है !

कवि दीपक सरल

Language: Hindi
1 Like · 212 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
The enchanting whistle of the train.
The enchanting whistle of the train.
Manisha Manjari
मैं क्यों याद करूँ उनको
मैं क्यों याद करूँ उनको
gurudeenverma198
स्वयं को स्वयं पर
स्वयं को स्वयं पर
Dr fauzia Naseem shad
3272.*पूर्णिका*
3272.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
जरुरी है बहुत जिंदगी में इश्क मगर,
जरुरी है बहुत जिंदगी में इश्क मगर,
शेखर सिंह
निकाल देते हैं
निकाल देते हैं
Sûrëkhâ
*विद्या  विनय  के  साथ  हो,  माँ शारदे वर दो*
*विद्या विनय के साथ हो, माँ शारदे वर दो*
Ravi Prakash
राम तेरी माया
राम तेरी माया
Swami Ganganiya
#लाश_पर_अभिलाष_की_बंसी_सुखद_कैसे_बजाएं?
#लाश_पर_अभिलाष_की_बंसी_सुखद_कैसे_बजाएं?
संजीव शुक्ल 'सचिन'
जब मुझसे मिलने आना तुम
जब मुझसे मिलने आना तुम
Shweta Soni
सर्दी का उल्लास
सर्दी का उल्लास
Harish Chandra Pande
"लोग करते वही हैं"
Ajit Kumar "Karn"
शिखर के शीर्ष पर
शिखर के शीर्ष पर
प्रकाश जुयाल 'मुकेश'
जिंदगी का मुसाफ़िर
जिंदगी का मुसाफ़िर
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
रिश्ते
रिश्ते
Ram Krishan Rastogi
बदनाम से
बदनाम से
विजय कुमार नामदेव
वो मेरा है
वो मेरा है
Rajender Kumar Miraaj
अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं
अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
#छंद के लक्षण एवं प्रकार
#छंद के लक्षण एवं प्रकार
आर.एस. 'प्रीतम'
'ਸਾਜਿਸ਼'
'ਸਾਜਿਸ਼'
विनोद सिल्ला
"सवाल"
Dr. Kishan tandon kranti
भोला-भाला गुड्डा
भोला-भाला गुड्डा
Kanchan Khanna
अभ्यर्थी हूँ
अभ्यर्थी हूँ
दीपक नील पदम् { Deepak Kumar Srivastava "Neel Padam" }
कविता-
कविता- "हम न तो कभी हमसफ़र थे"
Dr Tabassum Jahan
ममता
ममता
Dr. Pradeep Kumar Sharma
शायरी - गुल सा तू तेरा साथ ख़ुशबू सा - संदीप ठाकुर
शायरी - गुल सा तू तेरा साथ ख़ुशबू सा - संदीप ठाकुर
Sandeep Thakur
दिल का गुस्सा
दिल का गुस्सा
Madhu Shah
तख्तापलट
तख्तापलट
Shekhar Chandra Mitra
हर वर्ष जलाते हो हर वर्ष वो बचता है।
हर वर्ष जलाते हो हर वर्ष वो बचता है।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
सूरज दादा
सूरज दादा
डॉ. शिव लहरी
Loading...