न दोस्ती है किसी से न आशनाई है
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खिले न फूल चमन में न गन्ध छाई है
खिज़ां के बाद ये कैसी बहार आई है
बने जो बात तो अपनी है मिलकियत दुनिया
बने न बात तो अपनी नहीं पराई है
मेरा मज़ाक़े सुखन मुझको दे रहा है मज़ा
ग़मों के दौर हैं , अश्कों की रोशनाई है
भटक रहा हूं मैं दुनिया के क़ैदख़ाने में
न दोस्ती है किसी से न आशनाई है
गिला नहीं है मुझे आंधियों से कोई
मेरी नज़र में हवाओं की बेवफ़ाई है
–शिवकुमार बिलगरामी