निःशक्त, गरीब और यतीम को

निःशक्त, गरीब और यतीम को, अशकुनी कहना नहीं।
देखकर इनको राह में तुम, राह अपनी बदलना नहीं।।
निःशक्त, गरीब और यतीम को—————-।।
अभिमान तुम करना नहीं, अपनी शक्ल – सूरत पर।
हंसना नहीं कभी भी तुम,मजबूर और बदसूरत पर।।
स्थिर नहीं है समय का पहिया,नफरत इनसे करना नहीं।
निःशक्त, गरीब और यतीम को—————।।
उनके लिए भी करना प्रार्थना, जो है यतीम दुनिया में।
करना मदद उन लोगों की भी, जो है बेघर दुनिया में।।
आये अगर ये तुम्हारी दर, अपशब्द इनको कहना नहीं।
निःशक्त,गरीब और यतीम को—————–।।
निःशक्त भी तो इंसान है , घृणा से इनको देखो नहीं।
मजबूर ऐसे लोगों को तुम,धरती पे बोझ समझो नहीं।।
बांटों इनको अपनी खुशियाँ, अछूत इनको कहना नहीं।
निःशक्त, गरीब और यतीम को—————।।
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)