नृत्य किसी भी गीत और संस्कृति के बोल पर आधारित भावना से ओतप्
23/175.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
For a thought, you're eternity
बुंदेली दोहा- छला (अंगूठी)
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
हरे हैं ज़ख़्म सारे सब्र थोड़ा और कर ले दिल
इंसान और कुता
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
ना रहीम मानता हूँ मैं, ना ही राम मानता हूँ
मित्रता दिवस पर एक खत दोस्तो के नाम
चंचल मन चित-चोर है , विचलित मन चंडाल।
ईव्हीएम को रोने वाले अब वेलेट पेपर से भी नहीं जीत सकते। मतपत
उसी संघर्ष को रोजाना, हम सब दोहराते हैं (हिंदी गजल))