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15 May 2022 · 1 min read

नरसिंह अवतार

हिरणाकश्यप ने मृत्युंजय बनने के, सारे जतन जुटाए
घोर तपस्या के बल पर,ब़म्हा से वरदान बहुत ही पाए
न दिन में मरूं, न रात में,न घर में न बाहर
न मैं नीचे मरूं धरा पर,न ही मरूं मैं ऊपर
न हथियार चले कोई,न नर या कोई जानवर
सोच समझ कर मांग लिए वर,खुश हो गया अभय पाकर
डूब गया अपने ही दंभ में, धर्म का किया निरादर
खुद को कहने लगा ईश्वर, बढ़ाया पापाचार धरा पर
मृत्युंजय मान लिया खुद को,बन बैठा सर्बेश्वर
धर्म शील पुत्र प़हलाद हुए,भजन विष्णु का करते थे
पिता हुए नाराज, भगवान जो खुद को कहते थे
अटल भक्ति थी भक्त प़हलाद की,वे टस से मस न होते थे
जहर दिया पहाड़ से फेंका, अग्नि में उन्हें जलाया
नाना जतन जुटाए उसने, प़हलाद न मरने पाया
गुस्से में हिरणाकश्यप ने, प़हलाद को पास बुलाया
कहां है तेरा नारायण?, हिरणाकश्यप गुर्राया
प़हलाद ने कहा पिताजी, कहां नारायण नहीं है
बस्ते हैं प़भु कण कण में, कोई स्थान रिक्त नहीं है
क्या इस महल के खम्बे में,वसते तेरे नारायण हैं
हां इस खम्बे में भी, मुझको दिखते नारायण हैं
क़ोध में उसने उसी खम्बे से, प़हलाद को बांध दिया
काटूंगा तुझे और नारायण को, जोरदार प्रहार किया
प़कट हो गए नारायण,जिनने नरसिंह अवतार लिया
न नर थे न ही मानव,न ही दिन और रात
न ही अंदर बाहर मारा,न हथियार ही साथ
मार दिया था गोद में रखकर, नाखूनों का पाश
फ़ाड़ दिया नरसिंह भगवान ने, रखी भक्त की बात
सुरेश कुमार चतुर्वेदी

Language: Hindi
2 Likes · 1 Comment · 1038 Views
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