ग़ज़ल/नज़्म: एक तेरे ख़्वाब में ही तो हमने हजारों ख़्वाब पाले हैं
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एक तेरे ख़्वाब में ही तो हमने हजारों ख़्वाब पाले हैं,
नज़र ना लग जाए किसी की तो दिल से नहीं निकाले हैं।
साल-दर-साल ही निखर रही है रौनकें चाहत की,
इन बन्द आँखों में भी फोटो तेरे दिखते नहीं काले हैं।
ये बेवफाईयाँ, रुसवाईयाँ, तन्हाईयाँ सोचते होंगे बस वही,
मदहोशी के वास्ते जिनके दिलों में मदमस्त नहीं प्याले हैं।
आज़ फ़िर से निहारा मैंने कच्छा सा आँगन अपना,
कैसे कह दूँ पैरों के निशाँ तेरे दिखते नहीं निराले हैं।
रोशन हो गया घर का हर कोना आज़ तेरे आने से,
ये चाहत के दीपक जन्मों तक बुझने नहीं वाले हैं।
©✍🏻 स्वरचित
अनिल कुमार ‘अनिल’
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