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11 May 2024 · 1 min read

*नई मुलाकात *

डॉ अरुण कुमार शास्त्री
*नई मुलाकात *

तुम जब से खफा हुये हमसे जिंदगी रूठ गई ।
कोशिश मेरी तमाम इसको सँवारने की बेकार हो गई ।

सोच से परे स्वप्न थे भरे यौवन की तरंग में भीग हम रहे ।
ये दिन भी आएगा हमको पड़ेगा रोना था सोच से परे ।

वो था पहला दिन कॉलेज का और तुमसे हुई मुलाकात ।
हैरान थे हम परेशान से बिना रस्सी की गाय से भटके हुये ।

सब कुछ नया – नया अजनबी सा माहौल लेकिन रोमांच से भरा ।
फिर हुई बारिश तपिश मिट गई , बंजर जमीन पर कली खिल गई ।

सोच से परे स्वप्न थे भरे यौवन की तरंग में भीग हम रहे ।
पानी ही पानी था क्या अंदर क्या बाहर – एक जुनून खुशगंवार ।

तुम जब से खफा हुये हमसे जिंदगी रूठ गई ।
कोशिश मेरी तमाम इसको सँवारने की बेकार हो गई ।

रंग बदला , हवा बदली , मौसम ने अपनी दिशा बदली ।
तुम्हारे सोच के साथ – साथ तल्खी ने भी नरमी अपना ली ।

तेवर बदल गए हो सकता है तनहाई में हम याद या गए ।
पहले प्यार का आलम अजीब सा दोपहर की गुलाबी धूप सा ।

तुमने मुझे पुकारा जब मेरे तो सोये जज़्बात हिल गए ।
बादल सभी छटने लगे फिर से और इंद्रधनुष खिल गए ।

वो था पहला दिन कॉलेज का और तुमसे हुई मुलाकात ।
हैरान थे हम परेशान से बिना रस्सी की गाय से भटके हुये ।

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