दो मुक्तक

दो मुक्तक
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किसको पता कब जिंदगी की, डायरी भर
जाएगी
शाम जब होगी तो चिड़िया, लौटकर घर
जाएगी
सबसे सरल है साँस लेना, और लेकर छोड़ना
किसको पता कठिनाई, इसमें भी कभी पड़
जाएगी
((()))
सामान सौ बरसों का जो, जोड़ा पड़ा रह
जाएगा
चातुर्य जीवन का धरा पर, ही धरा रह जाएगा
सबको यहाँ पर सिर्फ गिनती की ही हैं साँसे
मिलीं
पूरी हुईं जिस दिन, घड़ा साँसों-भरा रह
जाएगा
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश )
मोबाइल 99976 15451