दोहे नौकरशाही
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वेतन थकती सीढियाँ, मजदूरी बेहाल
तेज़ बड़ी है लिफ़्ट से, महँगाई की चाल
तन खाये जो रात दिन, कहलाये तनख़ाह
पूरनमासी चाँद यह, दिखे माह में आह!!
हम तो नौकर आपके, सुनते हो सरकार
करें महीना चाकरी, लें इक दिवस पगार
चाय पिये कैंटीन में, महावीर कविराज
दास कम्पनी के बने, सिर पे तख़्त न ताज