दिखता नही किसी को
![](https://cdn.sahityapedia.com/images/post/476dc637a6fdf6b023c30d89b51e95ad_4cb20e677093a5f797138fdec20ba150_600.jpg)
गीत..
दिखता नही किसी को कुएं में आज पानी।
गायब -सी हो गई है पुरखों की निशानी।।
रहती चहल-पहल थी चौके पे सुबह-शाम।
रखते थे लोग इसका कोई ना कोई नाम।।
बहती हवा यहाँ थी पहले सुखद सुहानी।
गायब -सी हो गई है पुरखों की निशानी।।
वो दिन अभी भी याद हमें थे करीब जब।
पानी निकाल इससे रहे नित्य पीते सब।।
कहते बुजुर्ग अब भी व्यथा अपनी जुबानी।
गायब- सी हो गई है पुरखों की निशानी।।
कहने को गाँव अब भी मगर बात वो कहाँ।
पहले -सा प्यार दिखता नहीं आज है वहाँ।।
आवेगी नहीं लगता कि गुलशन में रवानी।
गायब -सी हो गई है पुरखों की निशानी।।
पटते कुएं को देख कोई टोकता नहीं।
ऐसा हुआ है क्या जो कोई रोकता नहीं।।
लिख कैसी रहे हम ये तरक्की की कहानी।
गायब -सी हो गई है पुरखों की निशानी।।
दिखता नही किसी को कुएं में आज पानी।
गायब -सी हो गई है पुरखों की निशानी।।
डाॅ. राजेन्द्र सिंह ‘राही’
(बस्ती उ. प्र.)