” दम घुटते तरुवर “
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ये कोई कल परसों की ही बात रही होगी शायद
मीनू अक्सर धाम मंदिर की सीढ़ियों में बैठी थी,
पूजा करी, आरती ली दर्शन पाकर फिर धन्य हुई
मधुर मधुर संगीत सुन राज संग धूप सेंक रही थी,
राज बोला देख मीनू मुस्कुराते हुए हरे भरे तरुवर
सुंदर सुंदर पेड़ पौधे लताएं सब आकार लिए हुई थी,
सच ही तो कहा सुंदरता से काटा गया है उनको तो
चिल्लाहट लेकिन उनकी किसी ने भी नहीं सुनी थी,
तरसती नज़रों से देखा एकटक उन्होंने पूनिया को
देखा मीनू ने उनकी ओर तो रूह कांप ही गई थी,
बोले तूं तो हमारा दर्द समझती है ना सच बताना
सुनकर उनकी दर्दानी दास्तां मैं भी घबरा गई थी,
ये तो खुश हैं लेकिन दम तो हमारा घुट रहा है ना
मन मर्जी का रूप देने की हमारी कामना नहीं थी,
मन मुताबिक हम अब लहरा नहीं सकते समीर संग
कलश तो कोई जानवर बनाने की हमने नहीं कही थी,
हाथ जोड़ बोले बचा सकती है क्या तूं हमको प्लीज़
पूछना जाकर सबसे हमारी इसमें क्या गलती थी,
इससे अच्छा तो हम अस्तित्व में कभी आते ही नहीं
जिंदगी तो नहीं थी लेकिन ये बेबसी भी तो नहीं थी,
खुले चमन में लहराने की हमारी तड़फ समझ मीनू
किसी ने नहीं सोचा लेकिन तुमने तो हमारी सुनी थी।