मौन अधर होंगे
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तुम से मिलना जब हमारा होगा
देखना बड़ा दायरा होगा
बीते सालों के एक एक दिन का
आंखों के सामने आना होगा
कैसे कटे ओर कैसे जीएं
तुम्हारे बिन
आंखों से ही कहना होगा
मौन अधर होंगे
उमर का भी एक तकाजा होगा
थोड़ा इस जग का भी तमाशा होगा
पर तुम मौन अधरों से ही
बातें सारी करना
आंखों में जब आए आंशु तो
कचरे का तुम बहाना करना
उसी नदी के पनघट पर
फिर एक बार मिलेंगे
फिर तुम अपना रस्ता चुनना
फिर चाहो तो दिल की सुनना
मैं तुम को वहीं मिलूंगा
मैं तुम को वहीं मिलूंगा
सुशील मिश्रा (क्षितिज राज)