तुझे देखा तो…
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ग़ज़ल
तुझे देखा जो ज़माना वो गुज़रा याद आया।
ज़ख्म-ए-दिल आज भी नहीं था भरा याद आया।
थामना हाथों को तेरा औ’ छोड़ना तेरा।
मेरा वजूद किस कदर था बिखरा याद आया।
चाँद निकला था ज़रा और वो ज़रा याद आया।
अपने किरदार में यूँ खोट मिलानी ही पड़ी।
गहना बनता नहीं सोना तो खरा याद आया।
गज़ब सुकून है यूँ खाली हाथ चलने में।
खोने के डर से हमेशा था डरा याद आया।
रिहाई माँगता था दिल बड़ी शिद्दत से ‘लहर’,
रिहा हुए तो बारहां वो पिंजरा याद आया।