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17 Nov 2022 · 1 min read

डर होता है

मेरा दिल भी जैसे कोई एक बच्चा है
खेलता ख़ुद आग से है और रोता है

मुद्दतों के बाद अपनों ने ख़बर ली है
आपको डर हो न हो मुझको तो होता है

आंखों में बसकर भी कितना दूर रहता है
बूढ़ी माँ का दर्द भी, उसका ही बेटा है

कोई सन्नाटा नहीं है शोर है दिलकश
तेरा घर तो मेरे घर से लाख अच्छा है

एक-दूजे पर हँसे होंगे मियां-बीवी
वर्ना अब अपने घरों में कौन हँसता है

क़हर क्या बरसा है इस जीवन ने भी
हर कोई अब अपने हक़ में बात करता है

अभिषेक पाण्डेय (Abhi)
१६/११/२२

23 Likes · 1 Comment · 90 Views
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