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17 Feb 2017 · 1 min read

~~~~ ठोकर ~~~~

उठ के चला तो
ठोकर लगी,
फिर गिरा
फिर ठोकर लगी,
फिर गिरा
फिर संभला,
फिर संभला
फिर गिरा,
फिर कब संभला
यह पता नहीं??

पता ही नहीं चला
जीवन ठोकर
के साथ धीरे धीरे
कब बीत गया !!

पर जो ठोकर
खा कर संभल गया
वो इंसान
बहुत आगे तक जाता है $$

जो ठोकर खा कर
बैठ गया
वो किसी को नहीं भाता है $$

गिरो तो संभल जाओ
तभी तो औरो को संभालोगे
यह जिन्दगी का हिस्सा है प्यारे
इस आनन्द को क्या ,
नहीं उठाओगे ??

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

Language: Hindi
394 Views
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