जीवन की सांझ
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चारों तरफ अंधेरा
खोया कहीं सबेरा।
पथ में बहुत हैं काँटे
खल तामसी सताते।
कोई लगे न अपना
जीवन है एक सपना।।
कैसे मैं राह पाऊं
डूबूँ या पार जाऊं।
जीवन की साँझ है क्या ?
रूख़सत का जाम है क्या ?
जोड़ा बहुत ये सत है –
चलता वही जो पथ है।।
गम का यहाँ बसेरा
तम छा गया घनेरा।
गीता बचन अमर है
जीवन ये बस समर है।
हारा न कोई जीता
सबकी यही डगर है।
नियंता ही बस चितेरा –
मत सोच तू अकेला।।