जिन्दगी
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पता नही क्यू फिर तुम याद आए ख्वाबो मे ख्यालो मे?
इस कदर जाब्ता था, अपनी ही जिन्दगी के सवालो मे!!
कभी फुर्सत न मिली कि हुस्न की इबादत भी कर सकू,
अब क्या फायदा जो इश्क को ढालू हुस्न के प्यालो मे?
जिंदगी की दौड़-भाग में, बेशक मसरूफ था इस कदर ,
कभी व्यौपार की चिन्ता,कभी डूबा रहा चंद निवालो मे!!