जाग्रत हिंदुस्तान चाहिए
जाग्रत हिंदुस्तान चाहिए ,जाग्रत हिंदुस्तान चाहिए
मानव मन के मल को धोने वाला पावन ज्ञान चाहिए
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गोदी में भूखा रोता है भारत माँ का अंश विकल है।
दीन-विवश -बलहीन बंधुओं पर भारी शोषण औ छल है।
गली-राजपथ -चौराहों पर लक्ष्यहीन नर भ्रमित चित्त-सा ।
कैसे बोलें राष्ट्र सबल, जब चेतहीन मदकंस प्रबल है ।
मार भगा दे जो दुर्गुणमय तिमिर दीप-सा ध्यान चाहिए।
जाग्रत हिंदुस्तान चाहिए,जाग्रत हिंदुस्तान चाहिए।
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सूर्पणखामय बृहद् विश्व से लक्ष्मण का स्वरूप ओझल है ।
काले कागरुपमय हिरदय की वाणी में भी कोयल है।
इस युग की इन परिभाषाओं को बदलेगा कौन सोच लो?
स्वयं जागकर बढो, बिज्ञता बिन सारा जीवन निष्फल है ।
सुरभित जीवन हेतु चेत बाणों का अब संधान चाहिए ।
जाग्रत हिंदुस्तान चाहिए, जाग्रत हिंदुस्तान चाहिए
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जीवन लेकर आए हो तो मुक्ति हेतु, ऋषिज्ञान धारिए।
बंधन- अवनति -चक्रव्यूह के तोड़ हेतु गुरुद्वार झाड़िए ।
भारत वर्ष प्रेम- संस्कृति का चेतनमय आनंदरूप धन।
इसीलिए प्रेमी किरीट बन,राष्ट्र शीष को अब निहारिए।
जागो प्यारे, अब स्वदेश को, द्वंद नहीं,मुस्कान चाहिए।
जाग्रत हिंदुस्तान चाहिए, जाग्रत हिंदुस्तान चाहिए
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●उक्त रचना को मेरी कृति “जागा हिंदुस्तान चाहिए” काव्य संग्रह के द्वितीय संस्करण के अनुसार परिष्कृत किया गया है।
●”जागा हिंदुस्तान चाहिए” काव्य संग्रह का द्वितीय संस्करण अमेजोन और फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध है।
पं बृजेश कुमार नायक
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