जहां से चले थे वहीं आ गए !
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दूर तलक जाने को,
निकले थे पांव अभागे।
जो लगी ठोकर सफर में,
जहां से चले थे वहीं आ गए।
प्रतिस्पर्धा ,बहुत ज्यादा थी,
जिंदगी परीक्षा लेने आमादा थी।
जरूरत थी तेज दौड़ लगाने की,
हम दौड़े मगर घायल हो गए।
नजरें हमारी लक्ष्य पर थी,
मंजिल हमारी अक्ष पर थी।
हमने तीर संधान किया,
डोर टूटी,हम जख्मी हो गए।
थोड़े बढे, कुछ आगे बढे,
बढ़ते रहे,बढ़ते ही गये।
‘दीप’ घुटनों से चलने वाले,
पैरों पर अपने खड़े हो गए।
-जारी
-©कुलदीप मिश्रा
©सर्वाधिकार सुरक्षित
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