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1 Aug 2019 · 1 min read

जलियाँ वाला बाग बोल रहा हूँ —आर के रस्तोगी

जलियाँ वाला बाग बोल रहा हूँ,जालिम डायर की कहानी सुनाता हूँ |
निहत्थो पर गोली चलाई थी,मरने वालो की चीखे सुनाता हूँ ||

चश्मदीद गवाह था मै यह सब कुछ द्र्श्य वहां देख रहा था |
मेरे आँखों में आँसू थे, पर डर के मारे न बोल रह रहा था ||

13 अप्रैल 1919 बैशाखी का दिन था,यहाँ काफी वीर सपूत आये थे |
रोलेट एक्ट के विरोध में ,ये सब मीटिंग करने यहाँ पर ये आये थे ||

सौ वर्ष के बाद भी आज उनकी चीखे सुनाई देती है |
उनकी आत्मायें भी आज सपनों में कुछ कह देती है ||

उधम सिंह था एक देश भक्त जिसने ख़ूनी डायर को मारा था |
चने चबाते चबाते लन्दन में उसने घर में घुस कर मारा था ||

उधम सिंह 11 साल का बालक था,जब उसने ये घटना देखी थी |
कसम खाई उसी दिन उसने जनरल डायर को मारने की ठानी थी ||

करता रहा 21 साल तक कोशिश,गरीब वह अपने घर से था |
मेहनत मजदूरी कर कर के वह पहुचा लन्दन उसके घर में था ||

चलाई तीन गोलियां डायर पर जब वह बदला ले लिया बोल रहा था |
कर दिया सरेंडर अपने आप को उसने अपने जीवन से खेल रहा था ||

आर के रस्तोगी
मो 9971006425

Language: Hindi
Tag: कविता
1 Like · 135 Views

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