जमाने में
![](https://cdn.sahityapedia.com/images/post/482e9a63cc2e613b62812c482d9ba236_874454b06a4f75af182b2d1cdf22e1a5_600.jpg)
जमाने में दिल का सार कोई नहीं बताता,
मारते हैं कितने ही खंजर पीठ पर;
कायर कभी अपना वार नहीं बताता।
होते है घायल कितने ही पर पंछी ऊंचे आकाश में,
बहेलिया कभी अपनी चाल नहीं बताता।
है खोज में सभी नफरत – ए- मंजर की,
प्यार की मिसाल कोई नहीं बताता।
नादान है वो जो सोचते है?
कि दुनिया बड़ी हसीन है।
जगमगाती दुनिया की असली बात कोई नहीं बताता।
पहुंचते हैं जब भी हम अनजान मोड़ पे जनाब;
एक बस मेरा खुदा ही है जो मुझे कहीं नहीं भटकाता।