जब शून्य में आकाश को देखता हूँ

जब शून्य में आकाश को देखता हूँ,
आकाश में चमकते तारों को देखता हूँ,
मैंने कभी यह नहीं सोचा था कि,
एक दिन मैं चमकूँगा आकाश में,
बनकर एक ध्रुव तारा इस प्रकार,
यह मेरी तपस्या थी।
मैं भी सोचता हूँ कि,
तुम भी हो आकाश में,
सितारों के बीच एक सितारा बनकर,
और मैं समझ लूंगा कि,
मेरा ख्वाब सच हो गया,
मेरा प्यार अमर हो गया।
तू चाहे मुझको मिले या नहीं मिले,
मगर तू मेरे सफर की मंजिल है,
तू मेरी मंजिल की खुशी है,
तू मेरी खुशी का ख्वाब है,
तू मेरी परवाज की रफत है,
तू मेरे साहिल का चिराग है।
गर कभी आ जाऊं तेरे करीब,
तू दिखाना मुझको रास्ता,
मेरी जिंदगी की रोशनी बनकर,
मेरी रोशनी का आफताब बनकर,
मेरी चांदनी का महताब बनकर,
मांगता हूँ खुदा से यही दुहा,
जब शून्य में आकाश को देखता हूँ।
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)