जब भी देखा है दूर से देखा
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ग़ज़ल
जब भी देखा है दूर से देखा
तुमने मुझको ग़ुरूर से देखा
दोनों की ही ख़ता बराबर थी
सिर्फ़ मुझको क़ुसूर से देखा
तुझको छोटा दिखाई देता हूँ
क्या मुझे कोह-ए-तूर से देखा?
मुझमें मज़हब दिखाई देता तुझे
यानी तूने फ़ुतूर से देखा
घूर कर वो ‘अनीस’ देखते हैं
हमने देखा! शुऊर से देखा
-अनीस शाह ‘अनीस’
कोह-ए-तूर =एक पहाड़ का नाम