जब प्यार है
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** गीतिका **
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खूब गहरा आपसी जब प्यार है।
प्राप्त नैसर्गिक यही अधिकार है।
नाम है संघर्ष का जब जिन्दगी।
सिंधु गहरे का न कोई पार है।
बढ़ चले हैं आंधियों को चीरकर।
बस विजय की अब हमें दरकार है।
शक्तिशाली की विजय होती सदा।
सत्य का भी जब प्रबल आधार है।
स्वर्ग से भी है बड़ी ये जन्म भू।
राम ने इसको किया स्वीकार है।
संगठित होना जरूरी है बहुत।
स्वप्न भी होता तभी साकार है।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य