छल प्रपंच का जाल
![](https://cdn.sahityapedia.com/images/post/812285090323233f7e04976f7a78b4d0_493db4fa597b7080961af1b8745ece06_600.jpg)
हर तरफ पसरा हुआ है
अब छल प्रपंच का जाल
ऐसे में हर आदमी दिख
रहा मन से ही बदहाल
अविश्वास की रेखाएं घनी
हो रही इत उत चहुंओर
फिर कैसे समाज में बढ़ेेंगे
सुख और समृद्धि के ठौर
बस अपनी ही फिक्र में डूबे
शिखर पर आसीन सब लोग
ऐसे में कैसे सफल हो सकते
समाज में सामूहिकता के प्रयोग
हे ईश्वर देश के जन जन को
दो जन कल्याण की सुबुद्धि
ताकि देश में फिर प्रबल हो
अमन और भ्रातृत्व भाव समृद्ध