चढ़ता पारा
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बढ़ता हुआ जो ताप है,
यह आदमी का पाप है।
चिरकाल से रूठे हुए,
भू-देवता का शाप है।
कटते हुए – जलते हुए,
वनदेव का आलाप है।
उद्योगवादी क्रांति से,
उपजा हुआ संताप है।
वनवासियों के नेत्र से,
बहता हुआ सैलाब है।
आकाश तक उड़ती हुई,
विषवायु का परिमाप है।
पिघले हुए हिमखंड का,
दुर्दांत पश्चाताप है।