चिंगारियां
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मेरे लफ़्ज़ों में
ये छिपी हुई चिंगारियां!
झेल सकेंगी क्या
सियासत की मक्कारियां!
इनके मर्म तक
पहुंच पाएंगे वही पाठक!
जिनमें बची हुई हों
थोड़ी-बहुत खुद्दारियां!
मेरे लफ़्ज़ों में
ये छिपी हुई चिंगारियां!
झेल सकेंगी क्या
सियासत की मक्कारियां!
इनके मर्म तक
पहुंच पाएंगे वही पाठक!
जिनमें बची हुई हों
थोड़ी-बहुत खुद्दारियां!