चाहत
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किसी की चाहत में हम खुद को भुला बैठे ,
होश जब आए तब इल्म़ हुआ क्या कुछ गवां बैठे ,
खुद को दीवाना बना भटकते रहे सराबों में ,
ग़म को गलत करते रहे मय़नोशी की राहों में ,
हम समझ ना सके ये अपना नसीब है ,
वो तो अपने किसी रक़ीब के क़रीब है ,
जिनकी ख़ातिर हम क़ुर्बान होकर रह गए ,
वो संग-दिल हमें ठुकरा किसी और के हो गए ,