गुज़िश्ता साल -नज़्म
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शीर्षक – गुज़िश्ता साल [ नज़्म ]
निकल रहा है एक और साल ज़िन्दगी से ।
पूछते रह गए…… हम सवाल ज़िन्दगी से ।।
कितने ख़्वाब मुक़म्मल हुए, सोचते हैं ।
ग़लतियों पर ख़ुद को हम कोसते हैं ।।
क़ामयाबी के मोती…. पाए हैं हमनें ।
गीत मेहनत के… गुनगुनाए हैं हमनें ।।
फ़िर भी रह गए कुछ मलाल ज़िन्दगी से ।
निकल रहा है एक और साल ज़िन्दगी से ।।
नये साल से…. उम्मीदें ढेर सारी है ।
नया करने की अभी कोशिश जारी है ।।
हासिल न कर पाए जो बीते साल में ।
पाने लेंगे वो लक्ष्य, अब पूरी तैयारी है ।।
रहना तुम बनकर हम-ख़्याल ज़िन्दगी से ।
निकल रहा है एक और साल ज़िन्दगी से ।।
©डॉ. वासिफ़ काज़ी , इंदौर
©काज़ी की क़लम
28/3/2 , अहिल्या पल्टन , इक़बाल कॉलोनी
इंदौर , मप्र