गाँव की याद
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सीमेंट कंक्रीट के घने जंगल के बीच
आदमीयत से परे इंसानी नज़रों से दूर
छुपकर खड़ी है एक छोटी सी खेजड़ी
जिस पर फूल रही है इस मौसम की मिमझर ।
उधर गाँव में भी तो होगी हरियाली अब
मिमझर से लक दक होगी खेजड़ियों की डालियाँ ।
कर रही होगी माँ… इंतजार
घर के आगे वाली खेजड़ी पर साँगरी लगने का ।
तैयार कर रही होगी
बाँस नुमा लम्बा बांवळी का तड़ा
जिस पर कस रही होगी रस्सी से
घर में बची एकमात्र दाँती ।
और फिर तोड़ेगी माँ… लम्बी-लम्बी साँगरियां
घर में बनेगी हरी साँगरी की सब्जी पूरे एक बरस बाद
और कुछ सुखाकर रखेगी माँ साँगरी
आने-जाने वाले मेहमानों की खातिर ।
©®राजदीप सिंह इन्दा